May 9, 2024 12:07 am

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*हम तो पूँछेंगे कलम की धार से*

*हम तो पूँछेंगे कलम की धार से*

*【1】क्या माँ के कोर्ट पहुंचते ही नेताप्रतिपक्ष हो गए दागदार या फिर संपत्ति की चाहत के पीछे हैं सियासत के पेंच*?

【2】 *क्या पुलिस से ही हैं। महिलाएं असुरक्षित आखिर महिलाएं फरियाद बताएं तो किसे*?

【3】 *क्या सभी जातियों को सियासत का हक नहीं, अगर है तो अब तक क्यों नहीं*

मध्य प्रदेश सीधी जिले से रविवार कब आ जाता है पता नहीं चल पाता आज रविवार है।तो कलम हाजिर है कुछ ज्वलंत सवालों के साथ हमारे खास पेशकश *हम तो पूँछेंगे कलम की धार से* के माध्यम से सवाल और जवाब हेतु । आज हम सियासत के उस स्तर पर सवाल कर रहे हैं जो उच्च को निम्न और निम्न को उच्च बना देने में सक्षम होते हैं। पूंछ रहे हैं कांग्रेस के दिग्गज राजनीतिज्ञ रहे चुरहट के राव घराने में जन्मे कुँवर अर्जुन सिंह और मध्यप्रदेश में सत्ता के सजग प्रहरी(नेताप्रतिपक्ष)के घर में संपत्ति के विवाद और सियासत के गिरते स्तर पर बड़ा सवाल। बीते दिनों मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में एक हलचल सी हुई की प्रतिपक्ष के अजय सिंह की मां अपने दोनों बेटों के विरुद्ध घरेलू हिंसा और भरण पोषण का वाद दायर करने अदालत की दहलीज तक जा पहुंचीं हैं यह वाक्या वाकई हैरान कर देने वाला था सत्ता तो इतना हर्षित हुई मानो प्रदेश का आमचुनाव(2018) जीत गए हों लेकिन जैसे ही एक दिन बीता आईना से धूल छंटने लगी बात पहुंच गई बहन वीणा सिंह पर और दिमाग का प्रेशर बढ़ाने पर पता चला कि सत्ता की चाल और संपत्ति की जबर्दस्त चाहत ने दांव पेंच से अनभिज्ञ बूढ़ी मां को अदालत की दहलीज में पहुंचा ही दिया फोटो वायरल हुई तो पीछे बेटी व्हील चेयर पकड़े मां को अदालत पहुंचाने में मदद कर रहीं थीं और तह तक लोग गए तो सत्ता की चाल भी वेनकाब हो गयी शिवराज और सरोज सिंह के वकील एक ही थे एक दो दिन और बीते तो पता चला कि वीणा सिंह को भाजपा चुरहट से अजमाएगी चुनाव लड़ना न लड़ना ये अलग बात है लेकिन इस सियासी ड्रामे ने यह जरूर स्पष्ट कर दिया कि संपत्ति की चाहत में मनुष्य खून के रिश्ते भूल जाता है इस हाईप्रोफाइल मामले में सम्पत्ति का विवाद सर चढ़कर बोला बहन को कैरवा में हिस्सा चाहिए और राजनीतिक उत्तराधिकार इसके लिए बूढ़ी मां (जिन्हें अत्यधिक उम्र होने के कारण बेटी का दांव पेंच नहींसमझ में आया) और व्हील चेयर से अदालत पहुंच गईं कसूर उनका उतना नहीं जितना संपत्ति चाहने वालों का है। क्योंकि अत्यधिक बुढापे में समझ छोटे बच्चे जैसे हो जाती है । बात तूल पकड़ी तो कुँवर साहब के साथी राजनीतिज्ञों ने बताना शुरू किया की जब अर्जुन सिंह राजनीति के उच्चस्थ शिखर पर चमक रहे थे तब बेटी वीणा संपत्ति पर एकाधिकार कायम कर लीं थीं और अगर उनके संपत्ति की तुलना अजय अभिमन्यु से की जाय तो अकेले दोनों के बराबर होगी। अब इसमें एकतरफ भाजपा की चाल दूसरी तरफ संपत्ति की चाहत ने चुरहट को पारिवारिक विवाद के निचले पायदान पर जरूर खड़ा किया लेकिन देर समय तक आमजनमानस को यह समझ आ गया कि हकीकत क्या है।बात जैसी भी हो पर ऐसे मामलों को बातचीत के माध्यम से निपटाया जाना था निष्कर्ष यह है कि अजय दागदार नहीं हुए शियासत बेनकाब हो गयी
【2】 *क्या पुलिस से ही हैं महिलाएं असुरक्षित आखिर महिलाएं फरियाद बताएं तो किसे*?
सरकार द्वारा महिलाओं की सुरक्षा हेतु तरह-तरह की प्रतिबद्ध योजनाओं के माध्यम से घोषणाएं की जाती हैं जिसमें सुरक्षा हेतु सबसे बड़ा माध्यम पुलिस ही होती है जिससे महिलाएं घरेलू हिंसा तथा बाहरी वारदात को बयां करते हैं लेकिन बीते कुछ दिनों से यह देखा गया है कि पुलिस से महिलाएं स्वयं असुरक्षित हैं जी हां बीते दिनों घरेलू हिंसा से संबंधित फरियाद करने पहुंची दलित महिला के साथ कोतवाली में पदस्थ नगर सैनिक द्वारा जिस तरह से लगातार तीन दिनों तक बलात्संग किया गया यह सुरक्षा पर बड़ा सवाल है। अगर ऐसी घटनाओं की और पुनराबृत्ति होती है तो महिलाएं पुलिस या ऐसी एजेंसियों से फरियाद के बजाय हिंसा सहना बर्दास्त करेंगी । ऐसे में सरकार की मंशा पर महिलाएं सुरक्षित नहीं रह पाएंगी इसके लिए आवश्यक है कि कोतवाली में सीसीटीवी कैमरा निगरानी कक्ष बनाया जाय और फरियाद करने पहुँचने वाली महिलाओं का त्वरित निराकरण संबंधी दिशा निर्देश जारी किए जाने की ब्यवस्था हो ताकि ऐसी घटनाओं से बचा जा सके अन्यथा खाकी के माध्यम से महिलाओं के न्याय की बजाय असुरक्षा ज्यादा है।

【3】 *क्या सभी जातियों को सियासत का हक नहीं अगर हां तो अब तक क्यों नहीं*?
सियासत महत्वकांक्षाओं का जबरदस्त बाजार है जहां सत्ता और विरोधी दल के नेताओं द्वारा सत्ता पर काबिज होने के लिए जबरदस्त दांव पेच लगाए जाते हैं जिसमें लगातार ब्राह्मण क्षत्रिय और अन्य बहुसंख्यक प्रभावी जाति के इर्द गिर्द सत्ता की पहिया परिक्रमा लगाती रहती है जिस कारण से दूर अंचल में बसे गरीब आदिवासी पिछड़े दबे कुचले लोग सत्ता की दहलीज पर पहुंचने की कोशिश भी नहीं कर पाते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या आज भी भारत का लोकतंत्र पूर्व के राजतंत्र के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहा है अगर ऐसा नहीं है तो पिछड़े दलित दबे कुचले आदिवासी यह सब राजनीतिक शब्द क्यों है आखिर ऐसे लोगों को जो धन बाहुबल से मजबूत नहीं है उन्हें सत्ता या संगठन में स्थान क्यों नहीं मिलता है मेरी कलम के विचार से ऐसे लोग जो निचले पंक्ति पर खड़े हैं ऐसे योग्य सुयोग्य लोगों को संगठन या सत्ता में जवाबदारी जरूर दी जानी चाहिए जिससे ऐसे लोगों का राजनीति और राजनेताओं से मोहभंग ना हो। रविवार की कलम आज यहीं तक अगले रविवार को फिर कुछ सवालों के साथ होगी मुलाकात

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राशिफल

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