March 29, 2024 5:18 am

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*हम तो पूँछेंगे कलम की धार से*

*हम तो पूँछेंगे कलम की धार से*

【1】 *क्या सत्त्तासीन संगठन में भी उठने लगे बगावती सुर या फिर रास्ता साफ करने सह और मात में सत्ता के नेता*?

【2】 *क्या उचित सामाजिक सद्भाव न मिलने से नाराज हैं दलित हरिजन*?

【3】 *क्या चुनावी समय मे ही का न्यायपूर्ण मांग के लिए हड़ताल पर जाना उचित है ।अगर हाँ तो कितना*?

सीधी सेआज रविवार है और हम हर बार की भांति आज भी जिले की सियासी उठापटक के पहले सवाल के साथ आप सबके बीच उपस्थित हूं पहला सवाल चुनावी बिगुल बजने के पहले सीधी भाजपा के संगठनात्मक बदलाव पर करेंगे परिवर्तन प्रकृति का नियम है लेकिन अगर ठंडी के समय में अचानक रात को गर्मी पड़ने लगे तो जन समुदाय का अचंभित होना लाजमी हो जाता है ठीक वैसा ही सीधी के सत्ता वाले संगठन में जिला के प्रमुख पद में परिवर्तन को लेकर हलचल है चुनाव है तो भी बिसात भी बिछाई जाएगी राजनीति शतरंज के खेल के समान है जिसमें ना जाने मोहरा मरवाया जा सकता है मध्यप्रदेश भाजपा में संघटनात्मक फिर बदल किया जा रहा था तब भाजपा के अजय चुनाव के प्रदेश रिटर्निंग ऑफिसर थे मध्य प्रदेश के हर जिले में जब जिला अध्यक्ष और कमेटियों की नियुक्ति अजय द्वारा की जा रही थी तो सीधी भला गृह जिला ही था सशक्त विरोधियों को मात देने वाले अजय को क्या पता था कि विरोधी भले ही कुछ समय के लिए कमजोर हो जाए लेकिन वह कभी हार नहीं मानता इसके अलावा जिन्हें हटाया गया है उनके कार्यशैली पर लगातार सवालिया निशान पैदा हो रहे थे फिर जब कार्य पर सवाल उठने लगे तो सीधी के वर्तमान विधानसभा सदस्य भला कैसे चुप बैठते हैं उन्होंने भी अपने पासा चलना शुरू कर दिए और चुनाव के 4 माह पूर्व बड़ी रणनीति सफलता प्राप्त कर ली लेकिन कूटनीति भले ही सफल हो गई हो पर एक बड़े और गंभीर सवाल जो बगावती सुर लिए हैं वह भाजपा के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं पूर्व के चुनाव पर एक नजर डालते हैं जब विपक्ष के द्विवेदी लगभग चुनाव जीतने की कगार पर थे तब कुछ रणनीतिक बिसात बिछाई गई थी कमजोरियां और चाल जैसी रही हो लेकिन सीधी के व्यापारियों ने भाजपा के वर्तमान विधायक की गुगली में फसकर कांग्रेस को मामूली अंतर से पराजित कर दिए थे लेकिन जब इस बार व्यापारियों के नेता के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया गया है तब व्यापारी बदला लिए बगैर कैसे चुप बैठ सकते हैं यह स्वर बुलंद भी हो रहा है दूसरी तरफ एक बात यह भी है की अपने शालीन व्यवहार के लिए विख्यात वर्तमान जिलाध्यक्ष संगठन के आंतरिक सर्वे में विधानसभा की पहली पसंद थे और वर्तमान विधायक टिकट कटने के अवसर पर शुक्ला से मिश्रा के पाले में गेंद जा सकते थे एक चाल और चलते हुए मिश्रा को संगठन की कमान देकर रास्ता साफ कर लिए लेकिन निवर्तमान जिला अध्यक्ष की भृकुटी टेढ़ी कर दिए हलाकि अगर संगठन के नेताओं की माने तो जिन्हें हटाकर परिवर्तन किया गया है उनके समय में खैरात जैसे पद आवंटित किए गए जिनका संगठन से कोई वास्ता नहीं था ऐसे लोग संगठन के पालनहार बन गए जिसके कारण संगठन निचले पायदान पर खिसकने लगा था लेकिन एक बात स्पष्ट है की जिस तरह बगावती सुर उठे हैं और निवर्तमान जिला अध्यक्ष के करीबियों द्वारा भाजपा में चारों पद ब्राह्मणों के अधीन होने जैसी बातें सोशल मीडिया में लिखी जा रही हैं इससे राजनीति का पायदान जरूर निचले स्तर पर खिसकने लगा है हालांकि पदभार ग्रहण करते ही भाजपा के मिश्रा ने बिचौलियों को बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिए हैं।

【2】 *क्या उचित सामाजिक सद्भाव न मिलने से नाराज हैं। दलित हरिजन*?
देश में वर्तमान परिस्थितियां जातीय विभेद कि लंबी लकीरें खींचती चली जा रही है ऐसी स्थिति में एक वर्ग दूसरे वर्ग के प्रति ईर्ष्या पूर्ण व्यवहार करता नजर आता है असंतोष की गहरी खाई खुद रही है यह सब सियासत की देन है धर्म बांटे गए तो आसानी से सत्ता मिल गई हिंदू मुसलमान सिख इसाई की रट लगा कर गुजरात से दिल्ली की सत्ता तक पहुंच गए छोटे से फसाद करा कर मीडिया के कैमरे में पहुंचा दिया जाता है फिर सज जाती है स्टूडियो और कोई टोपी और कोई टीके की बात करने लगता है जब राजनीतिज्ञों को लगा की धर्म की बात पुरानी हो गई और इसकी सच्चाई जनता तक पहुंचने लगी है तो एक गहरी खाई तैयार कर दी गई वर्ग विभेद की जिसमें सवर्ण के विरोध में हरिजन दलित को कर दिया गया और जबरदस्त आक्रोश मन में भर दिया गया हालांकि अगर सियासत ने यह लकीर न खींची होती तो वर्ग के बीच में ऐसे असंतोष देखने को ना मिलते हैं एक दूसरे के ऊपर लाठी डंडे चलाते हुए लोग न मिलते भारत बंद ना होता और लोग बेमौत मारे न जाते लेकिन सियासत का करिश्मा तो कुछ अलग ही होता है सत्ता की दहलीज में पहुंचने के लिए लोग क्या-क्या चालें चलते हैं यह तो उन कूटनीतिज्ञों को ही पता होगी जिनके द्वारा इस देश के अमन चैन को तोड़ा जा रहा है और वोटों के बिसात बीच असंतोष की गहरी खाई बनाई जा रही है एक बात और है की अगर यह चाल ना चली गई होती तो वर्तमान सत्ता को इन वर्गों के वोट नसीब ना होते क्योंकि पिछड़े तबके में यह बात घर सी कर गई थी की इस देश के निर्माण में कांग्रेस का महत्वपूर्ण योगदान है और इंदिरा गांधी गरीबी उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण योजनाओं के माध्यम से गरीबों के घर पहली बार उजाला चमका था लेकिन आर एस एस और भाजपा के अनुषांगिक संगठनों को यह बात पता हुई और इस तब के को कांग्रेस से दूर करने के लिए गहरी चाल चली गई जो विषैले असद भाविक समाज की ओर चल पड़े है।

【3】 *क्या चुनावी समय में ही न्यायपूर्ण मांग के लिए हड़ताल पर जाना उचित है अगर हां तो कितना*?
यह चुनावी वर्ष है और चारों तरफ कर्मचारियों में सरकार के प्रति लगातार आक्रोश बढ़ता जा रहा है कभी पंचायत कर्मी तो कभी राजस्व विभाग तो कभी लिपिक इस तरह संपूर्ण विभागों में सत्ता के प्रति आक्रोश व्याप्त है क्योंकि सत्ता के सिंहासन पर जिनके माध्यम से काबिज होते हैं उसमें कर्मचारियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है सरकारें उनसे उनके हित के लिए कई लुभावने वादे भी करती हैं लेकिन 4 साल बीत जाने के बाद उसको पूरा नहीं करती जिसके कारण कर्मचारियों को सत्ता के विरोध में कदम उठाने पड़ जाते हैं जबकि अगर दुनिया के विकसित देशों पर नजर दौड़ाई जाए तो अमेरिका ब्रिटेन जापान जर्मनी और रूस जैसे देशों में कर्मचारियों के लिए अच्छी खासी पेंशन योजनाएं और सेवा में रहते वेतन प्रदान किए जाते हैं जिस कारण भ्रष्टाचार का आलम कम रहता है लेकिन भारत में कर्मचारियों के कंधे में शासन का बोझ रखकर कार्य तो लिया जाता है लेकिन वायदे नेक इरादे के साथ नहीं किया जाता जिस कारण कर्मचारियों को हड़ताल जैसे सरकार विरोधी कदम उठाने पड़ जाते हैं लेकिन दूसरी तरफ अगर बात की जाए तो मध्यप्रदेश में यह कुछ ज्यादा ही है कर्मचारियों का यूनियन बन गया है उसमें संगठन के अध्यक्ष होते हैं जो राजनीतिक दलों के इशारे पर निर्णय लेते हैं और फिर चाहे प्रदेश का कितना भी नुकसान हो जाए लेकिन हड़ताल जैसे कदम उठा ही देते हैं वर्तमान में लिपिकों के हड़ताल में चले जाने से प्रदेश का अति नुकसान हो रहा है बरसात के समय में राजस्व के विवाद गांव में हो ना आम बात है लेकिन जिम्मेदार दफ्तरों में ताले लटके रहने के कारण यह अपराध की ओर मुड़ जाते हैं लेकिन एक तरफ सरकार की जिद तो दूसरी तरफ कर्मचारियों की और इन सबके बीच तंग और बदहाल है प्रदेश की जनता खैर 2018 हिसाब किताब का वर्ष जनता मूल ब्याज सहित जरूर वसूलेगी आज के लिए बस इतना ही फिर मिलेंगे अगले रविवार को

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राशिफल

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