इस गांव में 900 साल से नहीं मनाया जा रहा रक्षाबंधन
गाजियाबाद के मुरादनगर के सुराना गांव में नौ सौ साल से छाबड़िया गोत्र के भाइयों की कलाई सूनी है। जिसने भी यह परंपरा तोड़ने का प्रयास किया उसके साथ अनहोनी हो गई। गांव सुराना में रक्षाबंधन का पर्व अब बेगाना हो गया है। नेशनल हाईवे से 15 किलोमीटर दूर रावली सुराना मार्ग पर हिंडन नदी किनारे बसे गांव सुराना में सन 1106 से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाता है। करीब 15 हजार से अधिक आबादी वाले गांव में अधिकतर छाबड़या गोत्र के लोग ही रहते हैं। महंत सीतराम शर्मा ने बताया कि राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के वंशज छतर सिंह राणा ने सुराना में अपना डेरा डाला था।
छतर सिंह के पुत्र सूरजमल राणा के दो पुत्र विजेश सिंह राणा व सोहरण सिंह राणा थे। पहले सुराना का नाम सोहनगढ़ था। सन 1106 में रक्षाबंधन वाले दिन सोहनगढ़ पर मोहम्मद गोरी ने हमला किया गया था। हमले में गांव के युवकों, महिला, बच्चों व बुजुगों को हाथी के पैर से कुचलवा कर मरवा दिया गया था।
गांव में केवल सोहरण सिंह की पत्नी राजवती जिंदा बची थीं। विजेश सिंह राणा की पत्नी जसकौर सती हो गई थीं। राजवती भी इसलिए बच गईं क्योंकि जिस वक्त हमला हुआ था, वह अपने बच्चों के साथ मायके बुलंदशहर के गांव उल्हैड़ा गई हुई थीं।
पुत्र या गाय का बछड़ा होने पर मनाया जाता है त्योहार
ग्रामीणों ने बताया कि यदि रक्षाबंधन वाले दिन किसी महिला के पुत्र या गाय का बछड़ा पैदा हो जाए तो उस परिवार में रक्षाबंधन का पर्व मनाना शुरू हो जाता है। सन 1106 से लेकर अब तक सिर्फ दो दर्जन से अधिक परिवारों में पुत्र रत्न होने पर रक्षाबंधन पर्व मनाना शुरू हुआ है।
भैय्यादूज का पर्व मनाया जाता है धूमधाम से
गांव सुठारी निवासी विकास यादव ने बताया कि परंपरा के चलते रक्षाबंधन का पर्व तो गांव सुराना व सुठारी में नहीं मनाया जाता है। लेकिन भैय्यादूज पर बहन अपने भाइयों के साथ खूब मनाती है। गांव सुराना में भैय्यादूज का पर्व दो दिन मनाया जाता है।