April 24, 2024 4:13 pm

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*हम तो पूँछेंगे कलम की धार से* —– *रोहित मिश्रा*

*हम तो पूँछेंगे कलम की धार से* —– *रोहित मिश्रा*

【1】 *क्या जातीय संगठन के कारण दब जाती है न्याय की गुहार*?

【2】 *क्या अटल की अस्थि कलश के सहारे वाकई राजनीति कर रही वर्तमान सरकार*?

【3】 *क्या भारत का बदल रहा लोकतंत्र या फिर सत्ता की लालशा ने दिशा परिवर्तित किया*?

मध्य प्रदेश जिला सीधी मेरी सोच मेरी कलम से रविवार के बजाय आज सोमवार को……….
रविवार कल था और कलम की धार आज चल रही है। कतिपय कारण से मेरी लेखनी कल नहीं चल पाई इसलिए आज पूंछ रहे हैं। पहले सवाल में” *क्या जातीय संगठन के कारण दब जाती है न्याय की गुहार* ” आजकल जातीय संगठनों का अंबार सा लग गया है और सभी जाति के पढ़े लिखे लोग अपनी ही जाति के अशिक्षित जनता को पीछे चलने के लिए विवश करते हैं। पहले राजनीति का जातिकरण हुआ और संगठन बने, जिसमे जैसे ही किसी जाति विशेष द्वारा गलत कार्य किया गया उसका अगर विरोध हुआ तो जातिगत संगठन सपोर्ट में उतर जाएगा। जिसके कारण सच को जबदरस्त तरीके से दबा दिया जाता है। यह तो जातिगत सामान्य संगठनों की बात थी आगे समय बीतता गया और कर्मचारियों का भी संगठन बना आज के दौर में यह हालात हो गयी कि कर्मचारी किसी भी जाति धर्म का हो चाहे तो जितना भ्र्ष्टाचार कर ले जैसे ही जांच की बात की जाएगी तो संगठन चेतावनी देने लगेंगे हालांकि ऐसी चेतावनी संगठन के जीवित होने की एक आवाज मात्र होती है लेकिन इन सब के बीच सच या झूठ की पड़ताल जरूर नहीं होती और जनसमुदाय की भावनाओं स जमकर खिलवाड़ होती है। लेकिन ऐसे संगठन विकाससील देशों को गहरा आघात पहुंचाते हैं। क्योंकि यहां ईमानदारी स कार्य करने के बजाय अनियमितता और उसके बाद राजनीति के तले पिस जाती है अशिक्षित और भोली भाली जनता

【2】 *क्या अटल के अस्थि कलश के सहारे वाकई राजनीत कर ही वर्तमान सत्ता*?

इन दिनों भाजपा के पितृपुरुष अटल जी अस्थि कलश यात्रा वर्तमान सत्ताधीशों द्वारा निकलवाई जा रही है अगर उनकी तरफ से इसकी बात रखी जायेगी तो इसका मतलब यह होगा कि जनभावनाओं की मांग को देखते हुए कलश निकाली जा रही है लेकिन एक कटु सत्य यह भी है कि पहली बार आधुनिक लोकतंत्र में किसी राजनेता के लिए क्या सत्ता क्या विपक्ष यहां तक पशु की पक्षी भी आंखे नम कर लिए लेकिन सत्ता को यह कहाँ पचने वाला था उन्हें लग इससे बड़ा अवसर कब मिल सकता है फिर क्या —-“लोटा सजा” प्रधानसेवक मुआयना भी किये और दौड़ा दिए पड़ताल पर पता चला लोटा में कुछ नहीं है । बात अगर पुनः नीति की की जाय तो हड्डियों के सहारे सत्ता का सफर तंय करने की जो रणनीति बनाई गई वह अनुचित है इस प्रोपोगंडा से अटल जी के प्रति लोगों की श्रद्धा कम होगी। उनके शरीर के जले राख और हड्डी के साथ राजनीति न हो

【3】 *क्या भारत का बदल रहा लोकतंत्र या फिर सत्ता की लालशा ने दिशा परिवर्तित किया*?
आधुनिक लोकतंत्र की कोई ऐसी सुनिश्चित सर्वमान्य परिभाषा नहीं की जा सकती जो इस शब्द के पीछे छिपे हुए संपूर्ण इतिहास तथा अर्थ को अपने में समाहित करती हो। भिन्न-भिन्न युगों में विभिन्न विचारकों ने इसकी अलग अलग परिभाषाएँ की हैं, परंतु यह सर्वदा स्वीकार किया है कि लोकतंत्रीय व्यवस्था वह है जिसमें जनता की संप्रभुता हो। जनता का क्या अर्थ है, संप्रभुता कैसी हो और कैसे संभव हो, यह सब विवादास्पद विषय रहे हैं। फिर भी, जहाँ तक लोकतंत्र की परिभाषा का प्रश्न है अब्राहम लिंकन की परिभाषा – लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन – प्रामाणिक मानी जाती है। लोकतंत्र में जनता ही सत्ताधारी होती है, उसकी अनुमति से शासन होता है, उसकी प्रगति ही शासन का एकमात्र लक्ष्य माना जाता है। परंतु लोकतंत्र केवल एक विशिष्ट प्रकार की शासन प्रणाली ही नहीं है वरन् एक विशेष प्रकार के राजनीतिक संगठन, सामाजिक संगठन, आर्थिक व्यवस्था तथा एक नैतिक एवं मानसिक भावना का नाम भी है। लोकतंत्र जीवन का समग्र दर्शन है जिसकी व्यापक परिधि में मानव के सभी पहलू आ जाते हैं।भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने, सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का वादा सिर्फ एक वादा ही है। अनपढ़ भारतीयों की विशाल संख्या अक्सर भय और गलत बयानी का शिकार हो जाती है। राजनीतिक रुप से असंवेदनशील लोकतांत्रिक सिद्धांत और विचार उनके लिए ग्रीक या हीब्रू की तरह हैं। निरक्षरता असमानता का एक मुख्य कारण है। हमारे यहां पूंजीवादी लोकतंत्र है जहां अमीर आदमी गरीब का शोषण करता है। इसके अलावा भारत में कई भाषाएं और कई धर्म हैं। इसके परिणाम स्वरुप दुर्भाग्य से सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद और कट्टरवाद पनपा और असहिष्णुता की प्रवृत्ति विकसित हुई। जातिवाद अब अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसलिए आज भी ये खबरें आती हैं कि किसी दलित को सार्वजनिक स्थान पर या मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई।
भारतीय राजनीति बहुदलीय प्रणाली है। लेकिन राजनीति मौकापरस्ती और भ्रष्टाचार का खेल बनकर रह गई है। समाज की हर परत में भ्रष्टाचार व्याप्त है। बंद, हड़ताल और आतंकवादी गतिविधियों ने लोकतांत्रिक आदर्शों पर गहरा आघात किया है।अब्राहम लिंकन ने कहा था कि लोकतंत्र लोगों के लिए, लोगों के द्वारा और लोगों का है। किसी लोकतंात्रिक देश में कानून लोगों के द्वारा ही बनाए जाते हैं। इस पहलू में भारत को आसानी से सबसे कम न्याययुक्त देश कहा जा सकता है। यहां अमीर लोगों के पैसों की ताकत के आधार पर कानून बेेचा और खरीदा जाता है। संवैधानिक कानून विशेषज्ञ जाॅन पी फ्रेंक के अनुसार, किसी भी परिस्थिति में राष्ट्र को अपने नागरिकों पर अतिरिक्त असमानता नहीं थोपना चाहिए। उसे अपने हर नागरिक के साथ समान रुप से व्यवहार करना चाहिए। दुर्भाग्य से भारत में ऐसी कोई स्थिति नहीं है। एक सामान्य सा संवैधानिक अधिकार जैसे ‘सूचना का अधिकार’ भी इस देश में तमाशा ही है।

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राशिफल

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