April 20, 2024 3:27 pm

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला बड़ी बेंच में नहीं जाएगा मस्जिद में नमाज़ का मामला, अयोध्या केस पर सुनवाई का रास्ता साफ

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला बड़ी बेंच में नहीं जाएगा मस्जिद में नमाज़ का मामला, अयोध्या केस पर सुनवाई का रास्ता साफ

कोर्ट ने कहा कि इस्माइल फारूकी केस से अयोध्या जमीन विवाद का मामला प्रभावित नहीं होगा. अब इस पर फैसला होने से अयोध्या केस में सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट के फैसले के बाद अब 29 अक्टूबर 2018 से अयोध्या टाइटल सूट पर सुनवाई शुरू होगी.

दिल्ली सुप्रीम कोर्ट अयोध्या रामजन्मभूमि बाबरी-मस्जिद से जुड़े 1994 के इस्माइल फारूकी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने 2-1 के फैसले के हिसाब से कहा है कि अब ये फैसला बड़ी बेंच को नहीं जाएगा. इस केस के पक्षकारों ने केस को सात सदस्यीय बेंच में ट्रांसफर करने की मांग की थी.
कोर्ट ने कहा कि इस्माइल फारूकी केस से अयोध्या जमीन विवाद का मामला प्रभावित नहीं होगा. ये केस बिल्कुल अलग है. अब इसपर फैसला होने से अयोध्या केस में सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट के फैसले के बाद अब 29 अक्टूबर 2018 से अयोध्या टाइटल सूट पर सुनवाई शुरू होगी. पीठ में तीन जज शामिल थे, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस नजीर.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई है कि इस पर जल्दी निर्णय लिया जाए. फैसले में कोर्ट बताएगा कि यह मामला संविधान पीठ को रेफर किया जाए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रखा था कि संविधान पीठ के इस्माइल फारूकी (1994) फैसले को बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत है या नहीं.
कोर्ट ने पहले क्या दिया था फैसला?
1994 में इस्माइल फारूकी के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. इसके साथ ही राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था, ताकि हिंदू धर्म के लोग वहां पूजा कर सकें.
क्या कहते हैं पक्षकार?
उधर, मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि इस फैसले पर दोबारा परीक्षण किए जाने की जरूरत है. यही वजह है कि अब अदालत इस बात पर फैसला करेगी कि फैसले को दोबारा देखने के लिए संवैधानिक पीठ के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं.
अयोध्या विवाद में 2010 में आया था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
बता दें कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह फैसला सुनाया था कि विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाए. एक हिस्सा रामलला के लिए, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को दिया जाए. 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया था.
आदेश में बेंच ने 2.77 एकड़ की विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा करने को कहा था. राम मूर्ति वाले पहले हिस्से में राम लला को विराजमान कर दिया गया. राम चबूतरा और सीता रसोई वाले दूसरे हिस्से को निर्मोही अखाड़े को दे दिया गया और बाकी बचे हुए हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया गया.

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