April 20, 2024 12:32 am

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*कुछ की…बिन ”दूल्हे”,* *”बारात” निकल गई…?*

*कुछ की…बिन ”दूल्हे”,*
*”बारात” निकल गई…?*

*प्यारे दोस्तों…!*

आज के ‘स्वयंवर-प्रसंग’ पर मैं आपसे चर्चा की शुरूआत *अपने इस ताजे स्वरचित शेर* से करूं तो ज्यादा प्रासंगिक होगा-

*फिर से है,सज गया स्वयंवर,*
*घराती सब,तैयार हैं…!*

*कुछ की…*
*’बिन-दूल्हे’, बारात निकल गई,*

*कुछ को…*
*’दूल्हे’ की, दरकार है !!*
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*मित्रों…!*

मध्यप्रदेश सीधी जिला आज के प्रसंग पर *मैने आपके लिए एक सांकेतिक लघुकथा* लिखी है-
*”बात दसकों पूर्व की है जब एक स्वयंवर का आयोजन प्रारंभ हुआ ये स्वयंवर भी हमारे मानस ग्रंथों की तरह ही खुला आमंत्रण जैसा प्रारंभ किया गया यानी इस स्वयंवर में कोई भी व्यक्ति या किसी परिवार से चयनित कर भेजे जाने वाला व्यक्ति दूल्हा बनकर अपने साथी बारातियों सहित भाग ले सकता था और इस स्वयंवर में आने वाले दूल्हों एवं उसके साथी बारातियों का इसमें स्वागत तो होता था परंतु स्वयंवर के नियमों के मुताबिक दूल्हे की उम्मीदवारी के उम्मीदवारों में से उनके गुण,दोष,क्षमता व उसके अतीत के इतिहास,कूबत,विश्वसनीयता आदि-आदि बातों की समीक्षा करके स्वयंवर के घराती वहां आने वाले दूल्हों में से किसी एक को चुनते थे और फिर उसी के सिर उस स्वयंवर का असली हकदार दूल्हा होने का सेहरा बांधा जाता था। इस स्वयंवर की प्रतिस्पर्धा में विजयी दूल्हे के सिर सेहरा बंधन उपरांत जब उसका विवाह होना होता था तो वहां कोई दुल्हन रूपी केवल एक सुन्दर युवती नहीं होती थी बल्कि दूल्हन के रूप में वो सभी लाखों घराती खुद ही उस चयनित दूल्हे से खुद को भावपत्य तरीके से वैवाहिक करते हुए उसके सिर अपने सभी अरमानों,सपनों जिम्मेवारियों,नैतिक,सामाजिक, पारिवारिक दायित्व अपनी व बहन बेटियों की इज्जत आबरू की रक्षा सहित एक आदर्श दूल्हे से जो भी कल्पना व अपेक्षाएं की जा सकती हैं वो सभी आदि-आदि जिम्मेवारियां सौंपकर और उसे ही अपना भाग्य विधाता मानकर अगले स्वयंवर तक के लिए निश्चिंत हो जाते थे।*
*इस स्वयंवर की परंपरा ने जब धीरे-धीरे कई दसकों तक की अपनी यात्रा पूर्ण की तो इसमें शामिल होने वाले दूल्हे के उम्मीदवार तो बढ़ते गए पर इसकी प्रतिस्पर्धा में विजयी दूल्हे के रूप में कुछ खास बड़े परिवारों का कब्जा होता गया और दसकों-दसकों तक इन्हीं खास कुछ एक-दो परिवारों के लोग ही जो इस स्वयंवर में बतौर दूल्हा अलग-अलग चेहरों के प्रत्याशी भेजे जाते रहे और अधिकांशतह: वो ही विजेता बनते रहे। फिर चाहे उन्होंने अपने भावपत्य रूप से वैवाहिक घरातियों के अरमानों का ख्याल रखा हो या नहीं या फिर उनके सपनों का जनाजा ही क्यों न निकाल दिया हो।*
*हां…! इतना जरूर है कि जब-जब स्वयंवर के दिन नजदीक आए तो इन परिवारों को स्वयंवर में घरातियों के सामने भेजे जाने वाले अपने दूल्हे के चेहरे और अपने पारिवारिक काम-काज के समीक्षा की चिंता जरूर सताने लगती थी। कई बार पराजित होने के उपरांत फिर एैसे बड़े परिवारों ने नैतिक पतन के रास्ते अपनाएं और वो घरातियों को शाम-दाम-दण्ड-भेद से ठगने के महारथी हो गए। देश व समाज के विकास की जिस परिकल्पना को लेकर ये स्वयंवर परंपरा प्रारंभ की गई थी वो फिर लुटी…और लूटी गई…और फिर लुटती रह गई…।*
*इस बात के गवाह वो सारे घराती रहें जो ठगा सा महसूस करते रहे।”*

*मित्रों…!*
इस कहानी में हम बात कर रहे थे दसकों पूर्व प्रारंभ हुए *उस “स्वयंवर” की जिसका नाम आम चुनाव है* जो आज तकरीवन 65 वर्षों उपरांत अपने अलग तासीर के मापदण्डों के आधार पर चुनावी स्वयंवर के रूप में जाना जाता है यहां वही कुछ परिवार यानी स्थापित राजनैतिक दल एवं उनके ही दूल्हे (प्रत्याशी) स्वयंवर में कब्जा जमाने को बेताव रहते हैं।
चलिए अब बात करते हैं वर्तमान के राजनैतिक परिदृश्य के रोचक तथ्यों की।

*आचार संहिता के बाद नजारे…*
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आगामी विधानसभा चुनावों के परिपेक्ष्य में लगी आदर्श आचार संहिता उपरांत अब सबकी निगाहें पार्टियों के घोषित होने वाले प्रत्याशियों के नामों पर अटकी हुई हैं। जिले में अब भाजपा, कांग्रेस व बसपा के नामों को लेकर ज्यादा कयास लगाये जा रहे हैं।

*भाजपा पर नजर…*
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भावी विधानसभा चुनावों के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो रणनीतिक रूप से भाजपा ने अन्य दलों के मुकाबले हाल-फिलहाल बढ़त बना रखी है। पार्टी ने अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित करने से अधिक जोर जनसंपर्क पर लगा रखा है। भाजपा के सत्ता व संगठन में बैठे सारे पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं को पार्टी ने महाजनसंपर्क अभियान के तहत अभी से मैदान में ‘डोर-टू-डोर’ उतार दिया है। भाजपा के अनुश्रांगिक संगठनों की बैठकें लगातार जारी हैं।

*समय का रणनीतिक सदुपयोग…*
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भाजपा अपने प्रत्याशियों की घोषणा में अपने पैरामीटर्स को लेकर भले ही पार्टी के भीतर विचार मंथन में लगी हो परन्तु आचार संहिता लगने के बाद मतदान की उल्टी गिनती के दिनों में प्रत्याशी घोषित होने के पहले का जो समय हांथ में है उसमें भाजपा ने प्रत्याशी के चेहरे के बजाए पार्टी को आगे करके जनसंपर्क मजबूत करने में समय का सदुपयोग किया है। भाजपा बड़ी होशियारी से अपने 15 वर्षों की एंटी कनकंबेंसी को कम करने के लिए अपने महाजनसंपर्क अभियान में पार्टी के केन्द्र से लेकर राज्य सरकार की खास योजनाओं का प्रचार-प्रसार जोरशोर से करा रही है।

*एक तीर से दो निशाने…*
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अपनी रणनीतिक चाल से सधे अंदाज में भाजपा एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश भी करती दिख रही है। पार्टी ने अपने महाजनसंपर्क अभियान में जहां अपने संगठन से लेकर जनप्रतिनिधियों को तक घर-घर जनसंपर्क में उतार दिया है वहीं विधानसभा टिकट के सभी दावेदारों को भी इसमें उतारकर अपने टिकट घोषित करने के पूर्व के यानी आचार संहिता लगने से नामांकन दाखिल करने के बीच के तकरीवन एक माह के समय में सभी दावेदारों से एडवांस में पार्टी का प्रचार कराकर उनकी क्षमता का पार्टी हित में भरपूर दोहन कर रही है। इससे पार्टी को जहां जनसंपर्क का फायदा मिल सकेगा वहीं दूसरा फायदा उसको ये होगा कि उसके टिकट के दावेदारों में से जब एक ही नाम घोषित होगा तो बांकी दावेदार जो हाल में ही पार्टी का प्रचार कर चुके होेंगे वो टिकट कटने पर ताजा-ताजा बगावती विरोध कर जनता के बीच स्वाभाविक संकोचवश किस मुंह से जाएंगे और बैक-फुट पर होंगे जिससे बागियों का संकट भी पार्टी को कम झेलना पड़ेगा।

*अब कांग्रेस पर नजर…*
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भाजपा की तुलना में देखा जाए तो रणनीतिकतौर पर हाल-फिलहाल कांग्रेस की हालत पतली है। कांग्रेस आचार संहिता लगने से लेकर अपने प्रत्याशी घोषित करने के बीच के संधिकाल के समय को पार्टी को आगे करके भुनाने में कहीं दूर-दूर तक सक्रिय नहीं दिखती। आलम ये है कि कांग्रेस का जोर पार्टी को आगे कर जनसंपर्क के बजाए प्रत्याशी के नाम की लड़ाई में ही अभी तक अटका हुआ है। कांग्रेस ने अपने प्रमुख प्रतिद्वन्दी भाजपा के जनसंपर्क के मुकाबले अभी तक मानो पूरा फील्ड ही खाली छोड़ रखा है। कांग्रेस के भीतर भाजपा की तुलना में उसके प्रदेश की तरफ से भी कोई कार्यक्रम की रूपरेखा या अभियान प्रारंभ नहीं है।

*टिकट को लेकर भागदौड़…*
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कांग्रेस के भीतर अभी तक का आलम ये है कि पार्टी जहां ‘डोर-टू-डोर’ जनसंपर्क में नादारत है वहीं भारी भरकम दावेदारों की फौज अपना सारा शक्ति, सामर्थ प्रदर्शन दिल्ली, भोपाल में ही करने में मशगूल हैं। जिससे टिकट के बीमारों का बुखार व अटकलों तथा अफवाहों का दौर ही पार्टी के भीतर टाइम पास बना रहता है।

*बागियों का खतरा बढ़ा…*
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आगामी चुनाव प्रचार में कांग्रेस के पास सत्ताधारी भाजपा के खिलाफ एक ही प्रमुख मुद्दा एंटी-इनकंबेंसी है जिसे अभी तक वो जनसंपर्क में पिछड़कर भुनाने में शिथिल है। साथ ही कांग्रेस की एक अलग मुश्किल ये भी हो गई है कि उसे जिस महागठबंधन की उम्मीद सपा व बसपा से थी वो भी प्रदेश में फेल हो चुका है। बावजूद इसके कांग्रेस रणनीतिकतौर पर अपने पार्टी के भीतर अपने जनसंपर्क को मजबूत करने के बजाए अभी तक प्रत्याशियों के टिकट में ही उलझी है जिससे खाली परिक्रमा में ही व्यस्त उसके यही दावेदार जो अभी तक जनता से सीधे नहीं जुड रहे हैं वो ही अपना टिकट कटने पर खुली बगावत कर कांग्रेस की बड़ी मुश्किल बन सकते हैं। और एैसी स्थिति में जबकि सपा एवं बसपा की नजर कांग्रेस या भाजपा जैसी बड़ी पार्टियों के बागी बड़े चेहरे पर होगी उस वक्त ये बागी कांग्रेसी खुद कांग्रेस का कांटा बन सकते हैं। यानी कांग्रेस को सपा, बसपा से गठबंधन न हो पाने का जो नुकसान होने वाला है उसमें पार्टी के भावी बगावती आग में घी डालने का काम कर सकते हैं।

*एट्रोसिटी का असर जारी…*
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आगामी चुनावों के परिपेक्ष्य में जारी भाजपा के महाजनसंपर्क अभियान में यहां सीधी जिले भर में अभी तक पार्टी पर पांच प्रमुख मामलों के आरोप का असर जनता में खुलकर सामने आ रहा है। जिसमें एट्रोसिटी एक्ट, प्रमोशन में आरक्षण, बेरोजगारी, मंहगाई तथा एंटी एनकम्बेंसी प्रमुख है। मुख्यमंत्री ने गत माह एट्रोसिटी एक्ट पर ये घोषणा जरूर की थी कि बिना जांच गिरफ्तारी नहीं होगी परन्तु ये उनकी चुनावी घोषणा तक ही सीमित रही। उन्होंने अपनी कैबिनेट से पास कराकर एैसा कोई भी संशोधन आचार संहिता लगने के पूर्व नहीं किया। गत दिनों एट्रोसिटी एक्ट के विरोध का असर सीधी शहर में ही भाजपा को जनसंपर्क अभियान में देखने को मिला जब पार्टी के पदाधिकारी सवर्णों के यहां जनसंपर्क में गए तो उन्होंने प्रचार सामाग्री तक लेने से मना करते हुए अपना आक्रोशित विरोध दर्ज कराया।
आगामी प्रचार के दौरान भी भाजपा को अपनी सरकार से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों के प्रति तक के एंटी एनकम्बेंसी के साथ-साथ एट्रोसिटी एक्ट, प्रमोशन में आरक्षण, मंहगाई तथा बेरोजगारी के मुद्दे से दो-चार होना पड़ सकता है।

*और अंत में…*
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भाजपा व कांग्रेस के भीतर के इन ताजे हालातों के बीच बस यही कहा जा सकता है कि-

“पांच वर्षों बाद फिर से है सज गया चुनावी स्वयंवर और घराती सब (यानी आम मतदाता) तैयार हैं। इस बीच जहां कुछ की (यानी भाजपा ने) बिन दूल्हे (प्रत्याशी के) अपनी बारात निकाल दी है (पूरे पार्टी संगठन को जनसंपर्क में झोंक दिया है)। वहीं कुछ को (यानी कांग्रेस) अभी भी दूल्हे की दरकार में अटकी हुई है। शायद कांग्रेस अपनी पार्टी की बारात के साथ एडवांस जनसंपर्क को महत्व देने के बजाए अपने घोषित होने वाले प्रत्याशी द्वारा उसके पसंद के बारातियों के भरोसे स्वयंवर में शामिल होना चाहती है l

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