March 29, 2024 2:24 pm

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आरएसएस के जीत के ‘फार्मूले’ में छिपी है हार की चिंता!

आरएसएस के जीत के ‘फार्मूले’ में छिपी है हार की चिंता!

राहुल सिंह गहरवार प्रधान संपादक स्वतंत्र इंडिया लाइव सेवन

मध्यप्रदेश में बीजेपी 15 साल से सत्ता में है. किसी भी विधायक को घर बैठाना यानि सेबोटेज के बीज बोना और हार की फसल उगाना है
मध्यप्रदेश में चुनावी कमान संभाल चुके राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सामने दो बड़े मुद्दे हैं. एक अपने आंतरिक सर्वे रिपोर्ट पर 70 से ज्यादा बीजेपी विधायकों के टिकट काटना. दूसरा, टिकट कटने के बाद होने वाले अंतर्कलह से निपटने की रणनीति बनाना. मध्यप्रदेश में बीजेपी 15 साल से सत्ता में है. किसी भी विधायक को घर बैठाना यानि सेबोटेज के बीज बोना और हार की फसल उगाना है. (इसे पढ़ें- संघ का BJP को निर्देश- मध्य प्रदेश के 70 मौजूदा विधायकों को फिर न मिले टिकट)

संघ अब नए चेहरों को तलाशते हुए डैमेज कंट्रोल की रणनीति पर भी काम कर रहा है. जिसमें इस बात की पूरी संभावना दिख रही है कि इस बार संघ अपने कोटे के टिकट ज्यादा लेगा और प्रचारकों और स्वयंसेवकों की एक बड़ी फौज को चुनाव दंगल में उतारेगा. 70 वर्तमान विधायक और 70 विपक्षी दलों की सीटें मिलाकर करीब 150 सीटों पर संघ-बीजेपी में स्कुटनी का दौर चल रहा है. इनमें कुछ ऐसी सीट्स भी शामिल है जिनमें बीजेपी बहुत कम वोटों से पिछला चुनाव जीती है.

प्रचारक स्वयंसेवक लिस्ट में
संघ के नजदीकी सूत्रों का दावा है कि संघ के प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ग पूरा कर चुके सैकड़ो लोग संघ की लिस्ट में हैं, जिनमें से कई पूर्णकालिक प्रचारक बन गए है. कुछ अनुषांगिक संगठनों में जिम्मेदारी देख रहे हैं. कुछ बीजेपी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. ऐसे युवा चेहरों पर संघ की नजर है. एंटी इनकमबेंसी और स्थानीय असंतोष के कारण वर्तमान विधायकों के टिकट कटते हैं तो ऐसी जगह पर इन चेहरों को मौका देने की तैयारी है. जो न तो भाजपा के किसी गुट से है और न ही किसी नेता के खास हैं.

*संघ का सीधा दखल होने के कारण अंतर्कलह, सेबोटेज, दावेदारों के प्रतिस्पर्धी विरोध से निपटना भी आसान है*

स्पीकर से लेकर सीएम तक संघ के कोटे के
संघ ऐसे प्रयोग पहले भी कई चुनावों में कर चुका है. हाल फिलहाल में उत्तर प्रदेश इसका बेहतरीन उदाहरण है. जहां पर बसपा और सपा को तोड़ने के लिए संघ ने अपने लोगों को बड़ी संख्या में टिकट दिए. मध्यप्रदेश में भी हर चुनाव में लगभग हर जिले में एक या दो टिकट संघ कोटे से बंटते रहे हैं. स्पीकर सुमित्रा महाजन, राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय, संगठन महामंत्री रहें कृष्णमुरारी मोघे, विधायक उषा ठाकुर जैसे नाम सीधे संघ के कोटे के माने जाते रहे. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी पहला टिकट संघ के कोटे से ही आया है.

मॉनिटरिंग करेंगे
संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख अरूण जैन, क्षेत्रीय प्रचारक दीपक विस्पुते, बीजेपी के संगठन महामंत्री सुहास भगत ने चुनावी सूत्र थामते हुए प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिए संघ प्रभारी और सह प्रभारियों की फौज मैदान में उतार दी है. यह प्रभारी दरअसल चुनाव की मॉनिटरिंग करेंगे. और अपनी तटस्थ रिर्पोट संघ को देंगे.

*संघ को इस बार बड़ी आशंका पार्टी के दावेदारों से निपटने की है. 15 साल से सत्ता में होने के कारण कार्यकर्ता की अपेक्षा बहुत ज्यादा है. उससे निपटना बड़ी चुनौती है*

मुखर विरोध ने बढ़ाई चुनौती
संघ इस बात को भी नजरअंदाज नहीं कर रहा है कि इस चुनाव में कार्यकर्ता मुखर और
आंदोलनकारी तेवर में हैं. इसके कई उदाहरण बीजेपी जिला स्तर पर हुई दावेदारों की रायशुमारी पर देखने को मिले हैं. कई जगह पर प्रत्याशियों के खिलाफ खुलकर प्रदर्शन हुए हैं.

*सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के विधानसभा क्षेत्र भोपाल के गोविंदपुरा का है, जहां पर गौर की बहू कृष्णा गौर को टिकट देने के नाम पर कार्यकर्ता एकजुट हो गए और धरने पर बैठ गए*

रायशुमारी के बाद जिस तरह भाजपा के संगठन महामंत्री सुहास भगत प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह के पास जाकर लोग अपनी राय रख रहे हैं, परिवारवाद के खिलाफ बोल रहे हैं, वर्तमान विधायकों और संभावित दावेदारों के प्रति असहमति जता रहे हैं उसने भी संघ को हालातों से निपटने की नई चुनौती खड़ी कर दी है.

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