*हम तो पूँछेंगे कलम की धार से- रोहित मिश्रा*
【1】 *क्या प्रत्याशी चयन वाकई समस्या है सत्ता या विपक्ष की या फिर एक दूसरे का मुह ताकने में विलंबित हैं। समीकरण के सरताज*?
【2】 *क्या प्रत्याशी चयन के पूर्व शान्तिपूर्ण मौन बैठना संगठन के हित में है या फिर भितरघात का मन बनाये बैठे हैं सत्ता विपक्ष के मनगढ़ंत नेता*?
【3】 *क्या सीधी में फिर गूंजेंगी जातिगत खेल की सहनाई या जनता मन से तंय करेगी अपना प्रतिनिधि*?
मध्यप्रदेश सीधी जिला आज रविवार है और हम पूछ रहे हैं कलम के माध्यम से कुछ सवाल मध्यप्रदेश में अगले माह मतदान होना है जिसकी तैयारी सत्ता और विपक्ष दोनों द्वारा किया जा रहा है लेकिन सबसे बड़ी समस्या जो सामने है उसमें प्रत्याशी चयन कैसे किया जाए यह एक गंभीर विषय बन गया है एक ओर जहां सत्ता में बैठे गणितज्ञ चुनावी बिसात बिछाकर अपने नेताओं को चुनाव मोड में कर दिए हैं वहीं विपक्ष अब तक यह तय कर पाने में सफल नहीं हो सकी है की चुनाव के इस महा युद्ध में किसे मैदान में उतारा जाएगा हालांकि सत्ता और विपक्ष दोनों ने मैदान के खिलाड़ियों के नाम तय कर लिए हैं लेकिन संगठन के अंदर ही अपना अंतिम दांव चल रहे स्वप्रमाणित नेताओं के कारण पूरे मध्यप्रदेश में हालात प्रतीक्षा की ओर इशारा कर रहे हैं जिसकी वजह से औपचारिक ऐलान नहीं हो पा रहा है लेकिन एक बात स्पष्ट है कि विलंब विपक्ष के हित में बिल्कुल नहीं हैं क्योंकि अनिश्चितता में निर्णय लेना बहुत कठिन हो जाता है हालांकि अब लगभग यह तय हो गया है की मैदानी मुकाबला कुछ छोटे राजनीतिक दलों को छोड़ दिया जाए तो सत्ता और विपक्ष में वर्तमान समीकरण के बीच प्रत्याशियों को घोषणा के पूर्व सूचना मिल चुकी है घोषणा ना होना हैंडब्रेक के समान है।
【2】 *क्या प्रत्याशी चयन के पूर्व मौन बैठना उचित है या फिर भितरघात का मन बनाये बैठे हैं सत्ता विपक्ष के मनगढ़ंत नेता*
अगले माह चुनाव होने हैं जिसकी तैयारियां पार्टी स्तर पर दस्तावेजों में पूर्ण हो चुका है लेकिन बड़ा सवाल ये है की एक ओर जहां सत्ता के नेताओं द्वारा नेता चयन की प्रक्रिया को किनारे कर एक बड़े कार्यकर्ताओं की झुंड लेकर जनता के बीच सरकार की उपलब्धियों को गिराने का कार्य जारी है वहीं विपक्ष विधानसभा उम्मीदवार तंय न पाने के कारण साइलेंट मोड में बैठी है हालांकि दस्तावेज के रूप में विपक्ष दुरुस्त है लेकिन मूल अंतर यह है कि सत्ता की मोबाइल चुनाव मोड में है और विपक्ष की साइलेंट मोड में एक बेसिक अंतर और है कि सत्ता विधानसभा के प्रत्याशी क्या चिंता किए बगैर गांव गांव जाना शुरू हो गई है वहीं दूसरी ओर विपक्ष प्रत्याशी के इंतजार में शांतिपूर्ण तरीके से चुनावी बिसात बिछा रही है एक और अंतर है की सत्ता के नेता भाजपा को वोट देने के लिए जनता से वकालत कर रहे हैं वहीं विपक्ष के पालनहार अपनी अपनी उम्मीदवारी और स्वयं को वोट देने की जनता से अपील कर रहे हैं तौर तरीके अपने अपने हैं लेकिन एक बात स्पष्ट है कि तरीके ऐसे हो जो 15 वर्ष के बनवास को उबार कर सत्ता की सीढ़ियों तक पहुंचा दे ऐसा तब संभव है जब प्रत्याशी कोई भी वोट संगठन को दिया जाय।लेकिन जब अहम मनुष्य के अंदर आ जाता है तो वह अपने से बड़ा संगठन को भी नहीं समझता है और संगठन पर जबरदस्त आंतरिक हमला करता है जिससे संगठन घायल हो जाता है संगठन का 4 साल तक इलाज होता है 5 वें साल फिर वही हालात इसे कहते हैं भितरघात।
【3】 *क्या सीधी में फिर गूंजेगी जातिगत खेल की सहनाई या जनता मन से तंय करेगी अपना प्रतिनिधि*?
सीधी राजनीतिक दृश्य मध्य प्रदेश का महत्वपूर्ण सियासत का मैदान माना जाता है लेकिन जिले के अंदर की 4 विधानसभाओं में 3 को छोड़ दिया जाए तो सीधी विधानसभा में बीते 10 साल से जातिगत कार्ड खेला जाता रहा है यहां विकास मूलभूत आवश्यकता जैसे शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार सुरक्षा का हिसाब किताब लेने की बजाय जमकर जातिगत पासा खेला जाता है जिस्म खेलने वालों को आशातीत सफलता भी मिली यहां प्रतिनिधि द्वारा क्या किया जाना चाहिए क्या नहीं उसके बजाय जाति का झंडा ऊंचा रहे हमारा की बात की जाती है लेकिन ऐसा करने वाले सफल क्यों हो जाते हैं इसका नब्ज टटोलने में अब तक लोग असफल रहे हैं क्योंकि जिनको जातिगत मुद्दा बनाकर विधानसभा की सीढ़ियां चढ़ी जाती हैं उन्होंने उनके ऊपर मरे गए आरोपों को कभी जनता के समक्ष नहीं रखा की जिस तरह मेरे ऊपर आरोप लगाए गए हैं और मेरे जात के नाम पर चुनाव जीत जाते हैं उसका हकीकत या है ऐसा करना लोग अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना समझते हैं एक बात यह भी है राजनीति की गलियां बड़ी टेढ़ी-मेढ़ी हैं प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक मैकियावेली ने कहा था की राजनीति में मनुष्य को समय-समय पर सिंह और लोमड़ी के गुण धारण करना चाहिए लेकिन यहां तो सिंह जन्मजात सिंह है और जो सत्ता का सिंह है वह समय-समय पर अपने स्वरूप में परिवर्तन करता रहता है इसलिए अगर विधानसभा की गलियों में चलना पसंद है राजनीति के पाशा को ध्यान से देखना चाहिए हालांकि जातिगत कार्ड घिसा पिटा हुआ है लेकिन चाल चलने वाला कैसा चलता है यह उस पर निर्भर करता है आज बस इतना ही फिर मिलेंगे अगले रविवार को कुछ कटु सत्य के प्रारूप में पूछे गए सवालों के संबंध में