💐 *मिशाल शख्सियत के निशां की अनुगूंज आज भी फिजाओं में है…!*
💐 *ब्रजेन्द्रनाथ सिंह ‘मिस्टर’ की आज चौथी पुण्यतिथि पर विशेष*
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मध्य प्रदेश जिला सीधी *कई बार वक्त को गुजरते वक्त नहीं लगता…!!*
यूं तो कहने के लिए चार वर्षों का समय बीत चुका है पर विंध्य की राजनीति में अपने दम पर,उग्र तेवरों के साथ राजनीति को कूटनीति के दायरे में लाकर अपनी अलग शख्सियत बनाने वाले *ब्रजेन्द्रनाथ सिंह मिस्टर’* आज अपने दुनिया को अलबिदा कहने के चार वर्षों बाद भी राजनीति की दुनिया में सुर्खियां बटोरने के मामले में प्रासंगिक रहे हैं।
*आज से गत चार वर्ष पूर्व 4 अगस्त 2015 को ही अपने प्रसिद्ध नाम ‘मिस्टर’ के रूप में जाने जाने वाले ब्रजेन्द्रनाथ सिंह अपने स्वास्थ्य को लेकर लम्बे समय से चल रहे उठा-पटक के बीच हम सबका साथ छोड़कर चले गए थे।*
*ब्रजेन्द्रनाथ सिंह ‘मिस्टर’* एक साधारण शिक्षक के घर में पैदा हुए। शिक्षा-दीक्षा उपरांत खुद भी वो शिक्षक बने और फिर त्याग पत्र देकर राजनीति की जनसेवा के कार्य में उतर पड़े।
*कमाल की बात ये रही कि वो कभी विधायक नहीं रहे, सांसद नहीं रहे लेकिन जनसेवक के रूप में उनकी हैसियत किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि से कम नहीं रही।*
*’मिस्टर’ अक्सर-‘हिम्मत मर्दे,मदद खुदा…’*
की कहावत को खुद भी दोहराते और दूसरों को भी यही नसीहत देते। यही वजह रही कि जिस काम को घाघ राजनैतिक व्यक्ति नहीं करा पाते थे उसे वो चुटकियों में करा जाते थे। *’कमर्जी-हाउस’* में लोगों की जुटने वाली भीड़ आज भी यह मानती है कि *’मिस्टर’* के सेवा भाव में कोई कमीं नहीं रही। मेल-मुलाकात का उनका अंदाज अनोखा ही रहा है। अपरिचित से अपरिचित व्यक्ति भी यदि पहली दफा उनसे मिला होगा तो यह आभास ही नहीं हुआ होगा कि उसकी यह पहली मर्तबा मुलाकात है। इतना ही नहीं आवभगत के साथ सामने वाले की जरूरत को न कि सुना जाता था बल्कि यथा संभव पूरा करने का भी प्रयास किया जाता था। किसी राजनैतिक व्यक्ति के पास कोई दुखियारा आखिर इसी उम्मीद के साथ पहुंचता है कि उसकी बातों को प्रेम से सुना तो जाएगा, साथ ही समस्या निदान का प्रयास भी किया जाएगा।
*वर्तमान समय में ‘मिस्टर’ जैसे कम ही राजनीतिज्ञ होंगे जिनके दरवाजे पर कोई फरियादी पहुंचे और उसका ना कि गर्मजोशी से स्वागत हो बल्कि पूर्ण सहयोग की भावना के साथ समस्या निदान का प्रयास किया जाय।वर्तमान में तो लोग जनप्रतिनिधियों द्वारा काम न करने के बजाय उनके द्वारा दी जाने वाली घुड़की की ज्यादा शिकायत करते देखे जाते हैं।*
*खैर…!*
इस राजनैतिक शख्सियत को स्वर्गवासी हुए आज चार साल हो गए हैं,ऐसे में उन दीन-दुखियारों को खासकर *ब्रजेन्द्रनाथ सिंह ‘मिस्टर’* की कमी खलती है जो छोटी बड़ी समस्याओं को लेकर ‘कमर्जी-हाउस’ की ओर दौड़े चले जाते थे और पलक झपकते ही समस्या का निदान हाथ में आ जाता था।
*बड़े सुपुत्र आकाश चौहान ‘रिन्कू’ पिता की राह पर*
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*गरीबों के यार ‘मिस्टर’* के न रहने पर उनके बड़े चिरंजीव *आकाश सिंह चौहान ‘रिंकू’* ने पिता के नक्शे कदम पर चलना शुरू कर दिया है और वो ‘कमर्जी-हाउस’ पहुंचने वालों को किसी तरह से निराश नहीं कर रहे हैं। वो भी अपनी हैसियत के मुताबिक लोगों की सेवा में जुटे हैं।
*समाजवाद से प्रेरित रहे*
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*’मिस्टर’* कानून की डिग्री प्राप्त बेहतरीन कूटनीतिज्ञ व वेद शास्त्रों में कमान्ड रखने वाले राजनीति के बेताज बादशाह रहे। *ब्रजेन्द्रनाथ सिंह ‘मिस्टर’* का असमय चला जाना लोगों को आज भी उनकी कमी का अहसास कराता रहा है। शिक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने वाले *’मिस्टर’* समाजवाद से काफी प्रेरित रहे हैं। यूं कहे कि वे शुरू से लेकर आखिरी क्षणों तक समाजवाद की अलख जगाने में लगे रहे।
*पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह,विद्याचरण शुक्ला जैसे दिग्गज नेताओं के अनन्य सहयोगी के रूप में राजनीतिक पहचान बनाने वाले ‘मिस्टर’ राजनीति के धुरंधरों में एक रहे हैं। ‘मिस्टर’ ने खुद के संघर्षों के बल पर राजनैतिक जमीन तैयार की और कम समय में ही शख्सियत के रूप में उभर कर जाने गये साथ ही उन्होंने एक दबंग राजनेता, सर्वहारा वर्ग के मददगार के रूप में भी पहचान बनाई।*
सीधी शहर के पडै़निया में स्थित ‘कमर्जी-हाउस’ लम्बे समय तक राजनीतिक दरबारियों का ‘व्हाइट-हाउस’ रहा है। जब तक वे जिंदा रहे तब तक जिंदादिली का एहसास कराते रहे। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष के लोग सभी उनके दरबार-ए-खास में शिरकत करते और उनकी राजनीति का लोहा मानते रहे।
*विरासत में राजनीति नहीं, संस्कार मिले…*
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*’मिस्टर’* को राजनीति विरासत में मिली ऐसा कतई नहीं माना जा सकता है। *पिता स्व. तारा चन्द्र सिंह चौहान* खुद शिक्षक रहे हैं, ज्ञानियों में अग्रणी रहे हैं किन्तु राजनीति से कोई वास्ता नहीं रहा है। युवा अवस्था में जब ‘मिस्टर’ ने शिक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीति की दहलीज पर कदम रखा तो उनके पिता ने मनाही नहीं की लेकिन समय-समय पर सूझ-बूझ से जनसेवा करने की सलाह देते रहे। यही वजह रही कि वे अंतिम समय तक शोषित पीड़ित के लिए संघर्ष तो करते रहे,इसके अलावा समरसता मूलक समाज की स्थापना के लिए काम करते रहे।
किस्मत ने उन्हें भले ही लोकसभा,विधानसभा पहुंचने का अवसर नहीं दिया लेकिन कद्दावर राजनीतिज्ञ के रूप में जरूर पहचान दी। नियति को शायद उनका अवशान मंजूर रहा वरना दिग्गज राजनीतिज्ञों के गुलदस्ते से एक खिलखिलाता हुआ सुमन हम सबसे जुदा न हो जाता। उनके रिक्तता की न तो भरपाई हो सकती है और न ही नियति के रफ्तार को रोंका जा सकता है।
*शिक्षक से बने राजनेता…*
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9 सितम्बर 1949 को कमर्जी में जन्मे *ब्रजेन्द्रनाथ सिंह ‘मिस्टर’* बीए,बीएड एवं एलएलबी उत्तीर्ण करने के बाद कम उम्र में ही शिक्षक की नौकरी मिल गई थी। वे दस वर्षों तक शिक्षक पद के दायित्व का कुशल निर्वहन किए। इस दौरान वे कोतरकला,कमर्जी एवं खनुआ टोला में शिक्षक रहे। वर्ष 1977 में नौकरी से इस्तीफा देने के बाद वे विधानसभा सीधी में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में आए थे। तब से कई विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमाते रहे और कई बार जीत के करीब भी पहुंचे लेकिन नसीब में स्वतंत्र रूप से जनसेवा लिखी होने के कारण विधानसभा तक नहीं पहुंच सके। हालांकि इसके बाद भी वे किसी भी जनप्रतिनिधि से कमजोर हैसियत,पहचान,लोकप्रियता रखने वालों में नहीं रहे। किसी सरकारी पद में न रहते हुए भी उन्होंने जितने लोगों की मदद की होगी ऐसा कोई दूसरा अपने दम-खम के भरोसे कम ही कर सकता है।
*आज आयोजित होगा श्रद्धांजलि💐 कार्यक्रम*
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*ब्रजेन्द्रनाथ सिंह ‘मिस्टर’* के चतुर्थ पुण्य तिथि पर आज उनके निज निवास ‘कमर्जी-हाउस’ एवं उनके समाधि स्थल में फिर श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों का तांता लगेगा। जिसमें सीधी सहित अन्य जिले के लोग पहुंचकर *स्व.श्री ‘मिस्टर’* को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।
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*’राज’ की कलम ✍️से श्रद्धांजलि*
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*’महफिल’ सजती थी उनकी…”*
*और महफिल के ‘वो’ ‘ताज’ थे !*
*बात ‘पते’ की करते थे…*
*पर ‘खामोशी’ के ‘राज’ थे !!*
*’राजनीति’ करने के उनके…*
*अपने ही ‘अंदाज’ थे !*
*ठाठ ‘नवाबों’ सा था उनका…*
*भावुक से ‘जज्बात’ थे !!*
*दुश्मन से भी ‘झुककर’ मिलते…*
*यारों के ‘वो’ ‘यार’ थे…!*
*काटा ‘संघर्षों’ में जीवन…*
*शोषित की ‘आवाज’ थे…!!*
*’शोहरत’ रही, सांस के दम तक…*
*सत्ता से ‘वनवास’ थे…!*
*’राजनीति’ से इतर भी उनमें…*
*सोंधे से ‘एहसास’ थे…!!*
*’कायल’ था हर मिलने वाला…*
*हर एक को ‘मोहताज’ थे !*
*छोड़ गए ‘वो’ हमें अकेला…*
*जो ‘कल-तक’ मेरे…’आज’ थे !!*
*अब कहां मिलेगा…तुमसा ‘मिस्टर’ ??*
*ये ‘दर्द-ए-दिल’ अल्फाज थे…!!!*
*अब कहां मिलेगा…तुमसा ‘मिस्टर’ ??*
*ये ‘दर्द-ए-दिल’ अल्फाज थे…!!!*