March 29, 2024 7:08 pm

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*हम तो पूछेंगे कलम की धार से* *क्या अधिववक्ताओ पर लाठी चार्ज सीधी पुलिस की विधिक भूल थी*? *क्या सीधी न्यायालय

*हम तो पूछेंगे कलम की धार से*

*क्या अधिववक्ताओ पर लाठी चार्ज सीधी पुलिस की विधिक भूल थी*?

*क्या सीधी न्यायालय के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी वाकई डरे थे*?

*मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने आखिर क्यों लौटाया मामले की न्यायिक जांच* ?

हम रविवार की भांति इस रविवार को भी अपने खास पेशकश *हम तो पूँछेंगे कलम की धार से* के माध्यम से आज पूंछ रहे हैं सीधी के उस काले दिन के बारे में जब सीधी की पुलिस ने विधि की सारी मर्यादाएं लांघते हुए न्यायालय परिसर के अंदर ही कुरुछेत्र जैसे लाठियां बरसाई दरअसल 2 अप्रैल के भारत बंद के जवाब में सवर्णों का 10 अप्रैल का भारत बंद था मुख्य उद्देश्य आरक्षण विरोधी था लेकिन नेतृत्व विहीन आंदोलन ने पूरे आंदोलन की दिशा ही बदल दी मांग थी कि शांतिपूर्ण तरीके से शहर के गांधी चौक तक जाना है लेकिन इसी बीच पत्थरवाजों ने पत्थर चलाना सुरू कर दिया फिर क्या पूरी तैयारी से पहुंची पुलिस ने उतावलेपन में लाठीचार्ज का निर्णय ले ही लिया लाठीवर्षाने से पहले की कई नियम कायदे भी होते हैं पुलिस वाटरकैनल का उपयोग करके भी भीड़ को तीतिर बितर कर सकती थी क्योंकि भीड़ की संख्या न के बराबर थी नेतृव कोई खास नहीं था जिससे लाठी वर्षाने का आदेश औचित्यपूर्ण हो लेकिन पुलिस के आलाआफ़िसर भी जातिवाद के चंगुल में आखिर जकड़ ही गये और ऐसे जकड़ गए कि एक न सुनी और न्यायालय के अंदर भी *आसू गैस के गोले और लाठियां बरसाई* तड़ातड़ लाठियां और गोले की आवाज सुनकर न्यायाधीश भी कुर्शी छोड़कर अंदर चले गए अधिवक्ताओं के ऊपर ऐसे लाठी वर्षी की खून से लथपथ हो गए यह आमतौर पर बहुत कम देखने को मिलता है अगर मिलता है तो आपातकाल की स्थिति में पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने सन 2007 में ऐसा किया था जब जजो की चोंटी पकड़कर पुलिस पिटाई की थी । रौब जैसा भी रहा हो लेकिन पुलिस ने ऐसा करके विधि की अछम्य भूल की और विधि का नियम है कि *तथ्य की भूल छम्य है लेकिन विधि की नहीं* जिसका परिणाम पुलिस को मिलना प्रारम्भ भी हो गया है मध्यप्रदेश उच्चन्यायालय के रजिस्टार ने पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को पत्रचार किया है कार्यवाही प्रारम्भ है।

【2】 *क्या सीधी न्यायालय के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी वाकई डरे थे*? पहली बार हमने महसूस किया कि आमजन क्या जिला न्यायालय के अंदर सुरक्षा के घेरे में बैठे न्यायाधीश भी डरे सहमे दिख रहे थे मुख्यंयाधीश ने अधिवक्ताओं से कहा की न्यायालय के अंदर की लाठियों और आसू गैस की आवाज हम लोगों ने सुना है वाकई भयावह था इतना तक तो ठीक है अधिवक्ता और आमजन तब अचंभित हो गए जब मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने अपनी सुरक्षा हेतु कोतवाली से पुलिस बुला ली भारी पुलिस देखकर लोगों में कौतूहल बना की आखिर क्या कारण है तब जाकर पता चला कि न्यायाधीश की सुरक्षा में पुलिस बैठी है। आखिर ऐसी हालात क्यों पैदा हुई ये तो पुलिस के जिम्मेदार अधिकारी ही बता सकते हैं लेकिन एक बात और कटु सत्य है। *लाठी चार्ज से पूर्व सीधी के जिला कलेक्टर अंबेडकर चौक में उपस्थित थे* लाठी चालन भी उन्ही की उपस्थिति में हुआ जब हम लोग हंगामा सुरू किये तो वही आकर बातचीत भी किये इससे यह स्पस्ट होता है कि पूरा प्रशासन उतावला था कि कोई भी तड़ातड़ लाठियां बरशानी है। फिर क्या था लाठियां भी चलीं और खून भी निकला सत्ता की सांसद भी लावलश्कर के साथ अपने कार्यकर्ताओं को देखने भी पहुंची क्योंकि भाजपा के कार्यकर्ता भी संबंधित लाठी चार्ज में घायल हुए थे इधर मुख्य विपक्षी दल के नेता सापुत मारे बैठे थे आखिर ओछी मानसिकता प्रदर्शित भी हुई कोई नेता जिलाचिकित्सालय घायलों का हाल देखने भी नहीं पहुंचा हालांकि देर रात कुछ कांग्रेसी नेता पहुंचे और हाल जाना जो महज औपचारिकता था
【 3】 *मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने आखिर क्यों लौटाया मामले की न्यायिक जांच*?
इसे सवालों का सवाल ही कह सकते हैं क्योंकि देश मे जाति का जहर इन सियासतदारों ने इस कदर घोला की क्या महापुरुष क्या न्यायधीश या आलाअधिकारी सब डर -डर जीने को मजबूर हैं यह तब स्पस्ट हुआ जब अधिवक्ताओं पर लाठी चार्ज मामले की न्यायिक जांच बिना किसी कारण के सीजेएम ने वापस कर दिया हालांकि किसी भी प्रकरण की न्यायिक जांच और रिपोर्ट सौंपने की अधिकारिता माननीय उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय को है। लेकिन जिला न्यायाधीश के आदेश पर सीजेएम को मामले की औपचारिक जांच करनी थी लेकिन जातिवाद की कालिख न्यायाधीश के मुह में न पूत जाय इसलिए माननीय ने जांच को वापस कर दिया इसी बीच अधिवक्ताओं में भी राजनीति का कुछ मंजर देखने को मिला जब मध्यप्रदेश राज्य अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष अधिवक्ताओं के घाव में राजनीतिक मलहम लगाने पहुंच गए और मुख्यमंत्री की भाषा बोलने लगे बिना किसी औपचारिक भाषा के मुआवजे का ऐलान कर इस्तिगासा करने का सुझाव दे दिए और सदन में उपस्थिति अधिवक्ताओं ने जमकर तालियां भी बजाई लेकिन वहीं उपस्थित कुछ अधिवक्ता उपाध्याय की मनसा भाँप गए और बाहर आकर विरोध सुरू कर दिया और तो और जिला न्यायाधीश से जाँच वापस करने की सिफारिश भी कर दिए तब हम लोग जमकर विरोध किये जिसे कुछ तो गरम खून कहकर संतोष करने लगे लेकिन जैसे ही सीधी के अधिवक्ताओं ने बार काउंसिल अध्यक्ष की बात को समझना सुरू किया तो उन्हें सरकारी एजेंट कहने लगे बात जैसी भी हो खाखी के प्रति जबरदस्त आक्रोश है और आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग को लेकर अधिवक्ता बीते कई दिनों से न्यायिक कार्य का बहिष्कार किये हुए हैं हालांकि निलंबन, लाइन अटैच की खानापूर्ति वाली कार्यवाही जारी है आगे देखना है क्या होगा लेकिन इतना तंय है कि सीधी पुलिस के विरुद्ध ऐतिहाशिक कार्यवाही होगी कुछ और सवालों के साथ मिलेंगे अगले रविवार को

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राशिफल

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