साहब की आँखों में रेत
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राहुल सिंह गहरवार प्रधान संपादक की कलम से
मध्य प्रदेश जिला सीधी जी हां हम बात कर रहे हैं सीधी जिले में इन दिनों अवैध रेत उत्खनन जोरों पर हो रहा है उस पर मैं एक छोटी सी कविता लिख रहा हूं।
कितना हल्का, कितना कोरा-
एक निवेदन द्वार खड़ा है।
साहब की आँखों में रेत।।
जिसके मन-मंदिर में बस
मेहनत के घण्टे बजते हों।
तन की चौखट पर श्रमसीकर
के गुब्बारे सजते हों।
दरवाजे पर शीश झुकाए
हाँ! भारत बेज़ार खड़ा है।
साहब की आँखों में रेत।।
नाथूराम कलम में बैठे
खूँटी में लटके गाँधी।
निष्ठा की फ़ाइल टेबल पर
धूल खा रही है बाँधी।
कानूनों की छाँव ओढ़कर
हर काला व्यापार खड़ा है।
साहब की आँखों में रेत।।
बैठ देहरी, लू के दाने
फाँक रहा होगा कोई।
दोपहरी में खेत से गाएँ
हाँक रहा होगा कोई।
कैसे-कैसे मनोभाव ले-
भटका साहूकार खड़ा है।
साहब की आँखों में रेत।।
राहुल सिंह गहरवार प्रधान संपादक स्वतंत्र इंडिया लाइव7सीधी (मध्य प्रदेश)